Friday, March 10, 2023

मैं हूं सीमंतिनी – वर्षा श्रेयांस जैन


नदी में है नाव तो 
नाव की पतवार हूँ मैं

लहरों से उठे भंवर 
उस भंवर में मझधार हूँ मै

संगीत में है सुर 
सुरों की झंकार हूँ मैं 

जिंदगी की हकीकत 
हकीकत का सार हूँ मैं

मंदिर में पूजते जो प्रतिमा 
प्रतिमा का आकार हूँ मैं

फूल तरह कोमल 
कोमलता में छुपी तलवार हूँ मैं 

अपनों पर आए आँच तो
बचाने लाज अपनो की परिवार का सरताज हूँ मैं

मेरी जिंदगी है खुली किताब
किताब का हर अल्फाज़ हूँ मैं

आँगन की हूं इज्जत
देहरी का द्वार हूँ मैं

भावनाओं की बहती नदी में
प्रेम की निर्मल धार हूँ मैं

कह दे दो बातें कोई
उन बातों को पीने का साहस हूँ मैं 

क्यों डरूँ ? नोंची जाऊं , अँगलियों पर किसी के नाचूँ ?
न अब मै काँच की गुडिया न मोम सी पिघलूँ
अब हर जंग जीतने को तैयार हूँ मैं

जंग के मैदान की योद्धा हूँ मैं
सब कहते है मुझे स्त्री, नारी, चंचला

सच कहूं तो मैं सीमंतिनी
असीमित प्यार का भंडार हूँ मैं....
                – वर्षा श्रेयांस जैन

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