ये भी क्या बात हुई घुटते रहो..
बात सही भी हो तो कह न सको..
सब कुछ बस सहते रहो..
जो चाहे हो बस देखते रहो..
गलती न हो पर घुटने टेकते रहो..
बस अब और न सहना होगा..
अपने हक़ के लिये लड़ना होगा..
चुप रहने का अब दौर नहीं..
खामोशी से सहने का दौर नहीं..
तलाशना होगा अपना आसमां..
और अपनी ही जमीं..
नारी अब चुप रहने वालों में नहीं..
बेबसी के घूंट पीने वाली नहीं..
आवाज शोर में दबने वाली नहीं..
सशक्त है नारी और सशक्त हो..
फैसला लेने में और सख्त हो..
किसी पर न आसक्त हो..
दबना नहीं है अब तो उभरना है..
अन्याय के विरुद्ध लड़ना है..
अपने हिसाब से जीवन जीना है..
स्वरचित:- बलराम सोनी
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