हे स्त्री तू एक पृष्ठ नहीं, है इस जग की संपूर्ण कहानी,
तू लगे सिया शकुंतला राधा, कभी द्रौपदी गौरा कामिनी।
है सौंदर्य शोभा प्रेम स्वरूपा, है तू ही शक्ति स्वामिनी,
पुरुषत्व की पूर्णता का सार, तू बनी उसकी अर्धांगिनी।
हृदयरूपी सरोवर में तेरे, खिले ख्वाबों की कमलिनी,
गुलाबी पंखुड़ी से होठो में, तू लगती है फूल मालिनी।
काली मेघ-सी खुली जुल्फें तेरी , लगे निशा में चांदनी,
झील-सी नील समान आंखों में, लगे तू जैसे मृगनयनी।
बाली बना सूरज चंदा को, तेरी चमक फैलाएं रोशनी ,
रूढ़ियों को बांध आंचल में, तू निकल पड़े पथ गामिनी।
सहनशीलता की मूरत है, तू व्यवहार में लगे शालिनी,
जीवन राग की धुन में मगन, तू गुनगुनाए बन रागिनी।
असीम सागर में लीन तेरा प्रवाह , अमर हो मंदाकिनी,
बिंदी,कुमकुम सोलह श्रृंगार तुझपे सजे सौदामिनी।
नई पीढ़ी की सृजनकर्ता हैं , तू ही दुर्गा मां जगतजननी,
निर्मल गंगा सा बदन, सितारों की चूनर में लगे महारानी।
पूरक हैं जग में तेरी आकृति और ये प्रकृति की कहानी,
स्तब्ध है अब तेरे अस्तित्व के बखान में मेरी लेखनी की जुबानी।
- [मेरी गुल्लक 'शब्दों का संग्रह']
- कु.मेघा शर्मा
No comments:
Post a Comment