नारी लक्ष्मी रुप है , है दुर्गा का अवतार
सृजन किया है विश्व का गर्भ में रख कर पाला
कभी सौम्य सी चांदनी कभी धधकती ज्वाला
नारी प्रकृति की आदी स्वरूपा
शील स्नेह तपस्या अनुपा
सकल वेद में महिमा वर्णित
प्रेम की मूरत गुण हैं अगणित
अमित जिनकी माया ममता
अनुपमा है नहीं इनकी समता
शब्द सीमित में जाएं न वरनी
अखिल विश्व की तू ही जननी
गुरू सखी बहन अरु बेटी
बहु रूप में सब चिंता समेटी
जिस घर जन्मी वह घर तारा
पूजे देव जन बारम्बारा
कभी कहीं लज्जा कभी कहीं आशा
प्रीत , त्याग की सजीव परिभाषा
पर ईच्छा में जीवन यापन
सबसे रखती है अपनापन
निष्ठुर नियति की शोषित पीड़ित
मर्यादा में सीमित संकुचित
पतिव्रत धर्म बहु सरस निभाया
पति के लिए यह मांग सजाया
सदा न्यौछावर परहित हेतु
कभी जल सरिस कभी नदी बीच सेतु
संतति हेतु अति अनुरागी
आठों प्रहर सेवा में लागी
सहज भाव से सब कुछ सहती
उफ्फ न करती कुछ न कहती
नारी नारायणी रूप है , नारी ज्ञान विज्ञान
हाथ जोड़ नमन करूं हे सकल गुणों की खान
– अमित पाठक शाकद्वीपी
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