सीता सावित्री शिवा आदिशक्ति प्रकृति परब्रह्म अर्धांगिनी।
मंथन कर नवनीत उत्पन्न करती सृष्टि चक्र संचारिणी।
तितिक्षा शक्ति जिसकी जीवन अभिसिंचित पुष्पितकर पल्लव दायिनी।
नीति रीती इसकी जीवन को सुसंस्कृत करती ये सुसभ्यता संवाहिनी।
मांग भरने वाली भरण पोषण पूर्ति करती परिवार की अन्नपूर्णा होती सीमंतिनी।
दो पवित्र आत्माओं का मिलन पाणिग्रहण परिणय संस्कार जीवन की दिव्यताओं का करता संवर्धन।
सीमांतिनी की सीमा का होता अंत नए नए रिश्ते नातों का होता उत्सर्जन।
भार्या भर्तार पुरुषार्थ से सर्वोत्तम गृहस्थाश्रम करते संपन्न जीवन बिंदु को सिंधु बनाने का करते जतन।
सीमांतिनि वरण से होती अर्धांगिनी शुभ धर्माचरण से भव बंधन मुक्त कर दिव्य बनाती जीवन।
– मोहन लाल शर्मा जी
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