Tuesday, March 28, 2023

मै नारी हूं – कमल पटेल जी

मैं नारी हूं।,
मैं पूरे घर की जिम्मेदारी हूं।
सबको शिकायत होती है मुझसे,
फिर भी लगती सबको प्यारी हूं
मैं नारी हूं, पूरे घर की जिम्मेदारी हूं ।। (१) ।।

सावित्री सी सतवंती हूं मैं,
लोपामुद्रा सी विदुषी हूं मैं,
हाड़ीरानी सी बलिदानी हूं,
यदि लक्ष्मीबाई बन जाऊं,
तो मैं क्रांति की चिंगारी हूं ,
मैं नारी हूं,पूरे घर की जिम्मेदारी हूं ।। (२) ।।

दो कुलो की मर्यादा हूं मैं,
हरती सबकी बाधा हूं मै,
वेद पुराणों मे सम्मान मिला
अन्नपूर्णा का मुझे मान मिला
थोड़े अपवादो के कारण,
 स्वयं की प्रतिष्ठा हारी हूं।।
मैं नारी हूं, पूरे घर की जिम्मेदारी हूं ।। (३) ।।

आठों प्रहर सेवा हूं करती,
कभी पत्नी ,कभी मां हूं बनती,
घर ,दफ्तर, खेत, खलिहान,
हर जगह है, मेरे निशान
परिवार की खुशियों की खातिर,
घरबार पर जाऊं, बलिहारी हूं , 
मैं नारी हूं, पूरे घर की जिम्मेदारी हूं
सबको शिकायत होती है मुझसे,
फिर भी लगती सबको प्यारी हूं ।। (४) ।।
                     – कमल पटेल 

Monday, March 27, 2023

स्त्री : एक परिचय – मेघा शर्मा (मेरी गुल्लक शब्दों का संग्रह)

हे स्त्री तू एक पृष्ठ नहीं, है इस जग की संपूर्ण कहानी,
तू लगे सिया शकुंतला राधा, कभी द्रौपदी गौरा कामिनी।

है सौंदर्य शोभा प्रेम स्वरूपा, है तू ही शक्ति स्वामिनी,
पुरुषत्व की पूर्णता का सार, तू बनी उसकी अर्धांगिनी।

हृदयरूपी सरोवर में तेरे, खिले ख्वाबों की कमलिनी,
गुलाबी पंखुड़ी से होठो में, तू लगती है फूल मालिनी।

काली मेघ-सी खुली जुल्फें तेरी , लगे निशा में चांदनी,
झील-सी नील समान आंखों में, लगे तू जैसे मृगनयनी।

बाली बना सूरज चंदा को, तेरी चमक फैलाएं रोशनी ,
रूढ़ियों को बांध आंचल में, तू निकल पड़े पथ गामिनी।

सहनशीलता की मूरत है, तू व्यवहार में लगे शालिनी,
जीवन राग की धुन में मगन, तू गुनगुनाए बन रागिनी।

असीम सागर में लीन तेरा प्रवाह , अमर हो मंदाकिनी,
बिंदी,कुमकुम सोलह श्रृंगार तुझपे सजे सौदामिनी।

नई पीढ़ी की सृजनकर्ता हैं , तू ही दुर्गा मां जगतजननी,
निर्मल गंगा सा बदन, सितारों की चूनर में लगे महारानी।

पूरक हैं जग में तेरी आकृति और ये प्रकृति की कहानी,
स्तब्ध है अब तेरे‌ अस्तित्व के बखान में मेरी लेखनी की जुबानी। 

- [मेरी गुल्लक 'शब्दों का संग्रह']
- कु.मेघा शर्मा

Friday, March 24, 2023

औरत तुम महान हो – बलवंत सिंह राणा


हे जीवनदायनी तुम महान हो
इस धरा पर सबकी मुस्कान हो

अब ईश्वर ने तुम्हे बनाया होगा सच में बड़ी शिदत से तुमको इस दुनियाँ में सबसे अधिक सुन्दर बनाया होगा

कितने रूप धरे तुमने इस जगत में 
सारी कायनात तुमसे ही जन्मी होगी 

तुमने इस दुनियाँ में नई चेतना जगाई 
जिसे आज तक कोई समझ नहीं पाया

मां बहन रखा प्रेमिका का रूप निभाकर
अनंत अपार असीम तेरी माया इस दुनियाँ में

हे नारी नहीं कोई तेरा पार पाया 
जहान मे सारा दर्द मुस्कुराते तुने अपनाया

शब्द नही तेरी माया का गुणगान करूं 
समस्त विश्व की आदि और अन्त तुम्ही हो 

तुमको कोटि कोटि प्रणाम नित करता हूँ
तुम सा नहीं कोई इस जगत मे 
तुम ही जीवन और मृत्यु की पहचान हो
                    – डॉ बलवंत सिंह राणा 

Monday, March 20, 2023

नारी भी तुम, सुकुमारी भी तुम – भारती नामदेव

नारी भी तुम, सुकुमारी भी तुम
 हो ज्वाला सी चिंगारी भी तुम
                           सृष्टि का हो सार भी तुम
                           तो जीवन का आधार भी तुम
                          भक्ति की आवाज भी तुम
                          तो शक्ति का आगाज भी तुम
नारी भी तुम सुकुमारी भी तुम
हो ज्वाला सी चिंगारी भी तुम
                             हो वीणा की झंकार भी तुम
                              तो दुर्गा सी हुंकार भी तुम
                             हो मृगनयनी सी चंचल तुम
                          तो विंध्यवासिनी अचल भी तुम 
नारी भी तुम सुकुमारी भी तुम
हो ज्वाला सी चिंगारी भी तुम 
                           हो दुनिया से अंजान भी तुम
                          तो दुनिया की पहचान भी तुम
                              जो कहते हे गुमनाम हो तुम
                           तो उनका भी तो नाम हो तुम
नारी भी तुम सुकुमारी भी तुम
हो ज्वाला सी भी चिंगारी तुम
                                                 – भारती नामदेव 

हुंकार – डॉ मनीषा दंडवते

हाँ हूँ मैं ,सबला,सुमेधा,सुरेखा,
मत समझो ,मुझे जुही की कली,
मत समझो मुझे अबला,
मैं हूँ अब “शक्ति स्वरूपा -दुर्गा “
हाँ है मुझ में बल,बुद्धि,कौशल
नहीं मैं किसी से कम,
मत समझो मुझे अज्ञानी,
मैं हूँ अब “पुत्री स्वरूपा-शारदा “
हाँ हूँ मैं परिवार,समाज,देश की धूरी
नहीं किसी से मैं डरती,
मत समझो मुझे अपने अधीन,
मैं हूँ अब “स्वतंत्र स्वरूपा-लक्ष्मी “
हाँ है,अब भी मुझ में करुणा,माया,ममता
प्रकृति हूँ मैं,धरती हूँ मैं,
बीज की धारिणी हूँ मैं,
पर अब किसी की बंदिनी नहीं मैं!
धरोहर हूँ , अपने माता-पिता की,
धरोहर हूँ ,हर उस चाहने वाले की,
जिसने मुझे मनुष्य रूप में स्वीकारा,
मेरे अस्तित्व,मेरी भावनाओं को समझा,
मुझे माटी की मूरत न माना,वरन
मेरे गुणों को पहचान कर स्वीकारा,
अब मैं बंध न सकुंगी ,अन्याय को सह न सकुंगी,
क्योंकि,प्रतिकार की शक्ति को मैं-जान गई हूं
मेरे अस्तित्व के बिना “ठूँठ” है ये समाज,
“बजा ले डंका “ कितना भी,मेरे बिना राग ना
अलाप सके गा ये समाज,
क्योंकि- हाँ मैं हूँ, मैं थी, मैं रहूँगी
बीच में,केंद्र में,मध्य में
और अखिल विश्व घूमेगा चारों ओर मेरे,क्योंकि
हाँ हूँ मैं,परिवार,समाज,देश की धूरी !
मत समझो मुझे जुही की कली,
मत समझो मुझे जुही की कली .
– डॉ. मनीषा दंडवते

नारी शक्ति महान – शीला गोदरे

नारी को अबला कहते हैं । 
पर कभी नारीत्व ना जाना ।।
 नारी चाहे तो घर को स्वर्ग बना दे।

चाहे तो क्षण भर में घर को नर्क बना दे
 सब कहते है नारी अपने रूप बदली है। 
अरे मुसीबत में वही "नारी" दुर्गा बन जाती है।

  इतना ही नहीं देवी बनकर पूज्यनीय हो जाती
  सम्मान , सत्कार, उच्च पद पाकर 
सदा अपना कर्त्तव्य निभाती

नारी के सतीत्व को सबने जाना है
अग्नि भी शांत हो जलमग्न हो जाती है
नारी महान तांडव नृत्य दिखाती

पल भर में निर्मोही को मोही बनाती  
नारी शक्ति स्वरूपा बन हर रूप को बखूबी निभाती
मुसीबत में आंचल बिछा , सबका रक्षा कवच बन जाती
 सच में नारी तू नारायणी बन धरती को स्वर्ग बनाती
                                     – शीला गोदरे 

समानता – पूजा चोपड़ा

मेरी धरती अलग , तेरा आसमान अलग है

प्रकृति ने हम दोनों को दी पहचान अलग है

चाँद और सूरज में समानता कैसी ?

दोनों के महत्वपूर्ण हैं , पर स्थान अलग है

हम दोनों तो पुरक है एक दूसरे के

एक के बिना दूसरे का अस्तित्व ही नहीं है

एक पहिये पर कोई गाड़ी चलती नहीं है

दोनों एक समान वज़न उठाते हैं 

तब उस समय का पहिया चलाते हैं

पहले का वक़्त अलग था

अब समय की माँग अलग है

समानता तो केवल विचारों में होनी चाहिए

तेरी परवरिश अलग है ,मेरे संस्कार अलग है

मेरी धरती अलग तेरा आसमान अलग है

– पूजा चोपड़ा

भारत की नारी – प्रमोद उपाध्याय

क्यों बनती हो तुम अबला अब ओ भारत की नारी ?
तुम तो वह शक्ति हो दुर्गे जो करती सिंह सवारी 
तेरी शक्ति कथा से भरे पड़े हैं सब इतिहास हमारे
तुम को अबला कहने वाले शायद यह भूल चुके हैं सारे

तुम ही हो लक्ष्मी तुम ही सरस्वती कालिका हमारी तुम ही
भोग विलास कि नहीं वस्तु तुम, हम सबकी हो समस्त शक्ति तुम
मां के रूप में तुम अनुसुइया, बहन के रूप में एनी बेसेंट
पत्नी के रूप में तुम सावित्री, रानी के रूप में लक्ष्मीबाई हो

हम सबकी तुम प्रथम गुरु हो जो रखती लाज हमारी
क्यों बनती हो तुम अबला अब ओ भारत की नारी ?
तुम ही हो राधा तुम ही मीरा तुम ही नानी बाई
पहचानो अब अपने आपको ओ भारत की नारी
                                          – प्रमोद उपाध्याय

Thursday, March 16, 2023

नारी बखान – आभा गुप्ता

जीवन का मधुर संगीत है

तो मृत्यु सी दहाड़ है नारी,

रिश्तों के लिए है मोम

तो आन के लिए पहाड़ भी है नारी,

हवाओं से जूझती हुई लौ

तो चट्टानों के प्रहार झेलती हुई नदी है नारी,

तन से कोमल मन से बलवान

जीवन का विस्तार है नारी,

बलिदानी महान है सम्मान है

अभिमान है वरदान है नारी,

फूल है बहार है रूप है श्रंगार है

सभी रसों की खान है प्रेमिका है नारी,

सम्पूर्ण जगत के भार को

धारने वाली धरा है प्रकृति है नारी,

चल है अचल है लक्ष्मी है किसी भी रूप मे हो

कहाँ नहीं है नारी,

– आभा गुप्ता

Tuesday, March 14, 2023

सृष्टि – सुचित्रा श्रीवास्तव

तेरा जवाब नहीं तू तो लाजवाब है
विधाता की सृष्टि सरल तू सुनहरा ख़्वाब है,

ये धरती है वो नीला अम्बर है,
कहीं ऊंचे पर्वत तो कहीं गहरा सागर है,

सूरज की किरणों में तू ही आफताब है....
तेरा जवाब नहीं तू तो लाजवाब है।

रंगीन फूल हैं मुस्कुराती कलियां हैं,
इठलाती तितलियां, भौरों की रंगरलियां हैं,

जिधर देखो उधर तेरा हुस्न बेहिसाब है,
तेरा जवाब नहीं तू तो लाजवाब है।

आती जाती ऋतुएं हैं, हवाओं में खुशबू है,
मदमाती रातें हैं, खिलखिलाती सुबह है ,

ज़मीं से फ़लक तक तू ही महताब है,
तेरा जवाब नहीं तू तो लाजवाब है।

लहराती नदियों ने आज फिर पुकारा है,
लहलहाती फसलों ने दामन पसारा है,

प्रकृति का इशारा है , 
ये जहां हमारा है,

सब चाहें पढ़ना तुम्हें, ऐसी तू किताब है,
तेरा जवाब नहीं तू तो लाजवाब है।
                          – सुचित्रा श्रीवास्तव

Monday, March 13, 2023

नारी – श्याम चौहान

रही चौखट पर मौन
लज्जा का घुंघट ढोए
चारदीवारी मे कैद 
संस्कारों की चादर ओढ़े 

चूभती रही शक की सूई
लगते रहे ताने पर ताने 
मर्यादा की पकड़ बेड़ियां
रह गई घर की घर में

विरोध रहा सदा वर्जित
जलती तमन्नाओं की होली
सहा , सहनशील थी
लड़ती रही जज्बातो से

बदला दृष्टिकोण
शिक्षा का प्रसार हुआ
अबला से सबला नारी
नारी को पहचाना सभी ने
           – श्याम  चौहान 

Saturday, March 11, 2023

महिला दिवस – ज्योति जैन


माँ , बेटी ,  पत्नी , बहन नारी रूप हजार 
नारी से रिश्ते सजे नारी से परिवार

नारी हमारे परिवार की है जान
 नारी हमारे समाज की आन-शान-बान

नारी भाइयों की है मुस्कान
माँ की वो दुलारी दिल से है नादान

घर में जो मिले उचित सम्मान
समझ लो वो स्थान है स्वर्ग-समान

नारी करती है सब पर जान कुर्बान
तभी तो हर नारी है त्याग की पहचान

नारी के कदमो में बसी हुई है एक जन्नत
हाँ मुझे गर्व है मैं हूँ नारी , सृजनात्मकता की पहचान

अपने हौसले से तकदीर को बदल दे
वो शक्ति है एक नारी
                    – ज्योति जितेन्द्र जैन 

Friday, March 10, 2023

क्यूं मैं सीमंतिनी कहलाई ? – अमित पाठक शाकद्वीपी


कई बार खुद को परखना जो चाहा
हर बार सभी ने बेड़ियां लगाई

टोका रोका सभी ने मुझे हर पल
अपने मन का भी कहां मैं कर पाई

आभाव में गुजार दी बचपन मैंने अपनी
कम ही पढ़ाई मेरे हिस्से आई

दहलीज तक सीमित थी दुनिया ये मेरी
जबरदस्ती के शौक थे कलछी कड़ाही

सबकी उम्मीदें की मैंने पूरी
मेरी ख्वाहिशें किसी को नजर ही न आई

बीता जो बचपन जवानी जो आई
कहने लगे सब मुझको पराई

न पूछा न जाना किसी ने हाल मेरा
देखा शुभ दिन कर दी बिदाई

न्यौछावर किया है जीवन ये अपना
मैंने अपनी भूमिका बखूबी निभाई

अब बस जीवन से उम्मीद है इतनी
बनी रहूं मैं प्रेम की परिभाषा रोशन करूं सजन की अंगनाई

हो लंबी उम्र पिया जी तुम्हारी
मैंने तेरी खातिर ये मांग है सजाई

कभी दहलीज मायके की तो कभी ससुराल की सीमा पर हूं ठहरी
शायद इस लिए तो नहीं मैं सीमंतिनी कहलाई ??
                     – अमित पाठक शाकद्वीपी 

मैं हूं सीमंतिनी – वर्षा श्रेयांस जैन


नदी में है नाव तो 
नाव की पतवार हूँ मैं

लहरों से उठे भंवर 
उस भंवर में मझधार हूँ मै

संगीत में है सुर 
सुरों की झंकार हूँ मैं 

जिंदगी की हकीकत 
हकीकत का सार हूँ मैं

मंदिर में पूजते जो प्रतिमा 
प्रतिमा का आकार हूँ मैं

फूल तरह कोमल 
कोमलता में छुपी तलवार हूँ मैं 

अपनों पर आए आँच तो
बचाने लाज अपनो की परिवार का सरताज हूँ मैं

मेरी जिंदगी है खुली किताब
किताब का हर अल्फाज़ हूँ मैं

आँगन की हूं इज्जत
देहरी का द्वार हूँ मैं

भावनाओं की बहती नदी में
प्रेम की निर्मल धार हूँ मैं

कह दे दो बातें कोई
उन बातों को पीने का साहस हूँ मैं 

क्यों डरूँ ? नोंची जाऊं , अँगलियों पर किसी के नाचूँ ?
न अब मै काँच की गुडिया न मोम सी पिघलूँ
अब हर जंग जीतने को तैयार हूँ मैं

जंग के मैदान की योद्धा हूँ मैं
सब कहते है मुझे स्त्री, नारी, चंचला

सच कहूं तो मैं सीमंतिनी
असीमित प्यार का भंडार हूँ मैं....
                – वर्षा श्रेयांस जैन

Thursday, March 9, 2023

जागृति– ज्योत्सना चौहान

ममता के साए में पली,हिफाजत से दुनिया में ढली।
दुलार से भावनाओं में मढ़ी,नाजो से समाज में बढ़ी।

आंचल में खुशियां लिए,आंखों में उम्मीद लिए।
कदमों में हिम्मत लिए,मन में साहस लिए।

अग्रसर हूं मैं दुनिया को जीतने,अग्रसर हूं मैं सपनों को पूरा करने।
अग्रसर हूं मैं अपनी छाप छोड़ने, अग्रसर हूं मैं कुछ कर गुजरने।

ऊंची उड़ान भरी,नई कहानी रची।
सफलता कदम चूमने लगी,
तभी........... ,तभी.......... सबकी आंखों में गड़ी।

आलोचना मिली,घृणा मिली,नफरतों की आंधी मिली।
अवहेलना मिली,दोष मिले, अपमान के पहाड़ मिले।
 
नई रीति-रिवाज बने,नई सभ्यता-संस्कार बने।
नए नियम-कानून बने,नए गुण-अवगुण बने।

समाज की जंजीरों ने जकड़ा,कुरीतियों ने पल्लू है पकड़ा।
ढकोसलों ने कदमों को अकड़ा,अनैतिकता ने रोम-रोम को कतरा।

फिर उठ खड़ी हुई,अबला नहीं सबला हुई।
कमजोर नहीं कठोर हुई,आरंभ हुई अनंत हुई।

शक्ति की इस लड़ाई में फिर विजय हुई,अस्तित्व की इस लड़ाई में फिर जीत हुई।
जिंदगी के रहस्य में अभिजीत हुई,फतह का तिलक माथे पर लगाएं......
दुर्गा हुई,काली हुई,चामुंडा हुई।

समानता का अधिकार न छीनो,सम्मानता का अधिकार न छीनो।
स्त्री है वह निर्जीव नहीं ,जीवन का आरंभ और अंत वही।
मत पूजो उसे,ना बनाओ चामुंडा,इंसान है इंसानियत तो दिखा।

सर उठा कर बढ़ने दे,आत्मविश्वास से भरने दे।
हौसलों के गुबार उमड़ने दे,एक बार फिर स्त्री को शक्ति बनने दे।
                         – ज्योत्सना चौहान 

Sunday, March 5, 2023

सीमंतिनी – मोहन लाल शर्मा जी

सीता सावित्री शिवा आदिशक्ति प्रकृति परब्रह्म अर्धांगिनी।
मंथन कर नवनीत उत्पन्न करती सृष्टि चक्र संचारिणी।
तितिक्षा शक्ति जिसकी जीवन  अभिसिंचित पुष्पितकर पल्लव दायिनी।
नीति रीती इसकी जीवन को सुसंस्कृत करती ये सुसभ्यता  संवाहिनी।
मांग भरने वाली भरण पोषण पूर्ति करती परिवार की अन्नपूर्णा होती सीमंतिनी।
दो पवित्र आत्माओं का मिलन पाणिग्रहण परिणय संस्कार जीवन की दिव्यताओं का करता संवर्धन।
सीमांतिनी की सीमा का होता अंत नए नए रिश्ते नातों का होता उत्सर्जन।
भार्या भर्तार पुरुषार्थ से सर्वोत्तम गृहस्थाश्रम करते संपन्न जीवन बिंदु को सिंधु बनाने का करते जतन।
सीमांतिनि वरण से होती अर्धांगिनी शुभ धर्माचरण से भव बंधन मुक्त कर दिव्य बनाती जीवन।
           – मोहन लाल शर्मा जी 

तुम्हें शत शत नमन – सी एल दीवाना

नारी तेरे कितने रूप हैं
कभी मां बन कर मिलती हो
कभी बहन बन कर दिखती हो
कभी बीवी बन कर हमसफर का 
जीवन भर साथ निभाती हो
वो कभी छांव सी बन जाती है
वो कभी धूप बन जाती है
सुख दुःख में फिर साथ निभाकर
समाज को जोड़े रखती है 
कहता है कवि सी. एल. दिवाना
नारी तुम कितनी महान हो 

नारी तुमको शत शत नमन है
– सी. एल . दिवाना 

सीमंतिनी – सरिता सोनी जी

तुम शक्ति हो,श्रद्धा हो
तुम भक्ति हो पूजा हो
तुम ज्योति तुम ही ज्वाला
तुम कणिका तुम ही विशाला
तुम कोमलता मातृ रूप में
तुम ही अनुशासन की दृढ़ता
तुम से व्यवस्था तुम ही समस्या
तुम ही समस्या का समाधान हो
तो तुम ही ज्ञान विज्ञान हो
तुम ही आवश्यकता तुम ही आविष्कार हो
तुम चंचलता चपलता हो
गृहस्थी की तपस्या में रत तपस्विनी 
तुम संगिनी तुम वंदिनी
सीमाओं में बँधी तुम
सीमंतिनी
 – सरिता सोनी जी 

नारीत्व – अमित पाठक शाकद्वीपी

नारी रज की वंदना करता ये संसार 
नारी लक्ष्मी रुप है , है दुर्गा का अवतार

सृजन किया है विश्व का गर्भ में रख कर पाला
कभी सौम्य सी चांदनी कभी धधकती ज्वाला

नारी प्रकृति की आदी स्वरूपा
शील स्नेह तपस्या अनुपा

सकल वेद में महिमा वर्णित
प्रेम की मूरत गुण हैं अगणित

अमित जिनकी माया ममता
अनुपमा है नहीं इनकी समता

शब्द सीमित में जाएं न वरनी
अखिल विश्व की तू ही जननी 

गुरू सखी बहन अरु बेटी
बहु रूप में सब चिंता समेटी

जिस घर जन्मी वह घर तारा
पूजे देव जन बारम्बारा

कभी कहीं लज्जा कभी कहीं आशा
प्रीत , त्याग की सजीव परिभाषा

पर ईच्छा में जीवन यापन
सबसे रखती है अपनापन

निष्ठुर नियति की शोषित पीड़ित
मर्यादा में सीमित संकुचित

पतिव्रत धर्म बहु सरस निभाया
पति के लिए यह मांग सजाया

सदा न्यौछावर परहित हेतु
कभी जल सरिस कभी नदी बीच सेतु

संतति हेतु अति अनुरागी
आठों प्रहर सेवा में लागी

सहज भाव से सब कुछ सहती
उफ्फ न करती कुछ न कहती

नारी नारायणी रूप है , नारी ज्ञान विज्ञान
हाथ जोड़ नमन करूं हे सकल गुणों की खान
                           – अमित पाठक शाकद्वीपी 

Saturday, March 4, 2023

नारी तेरे रुप अनेक – डा मनीषा त्रिपाठी

समाज की आदर्श है नारी

शक्ति की पहचान है नारी

पथ की प्रतीक्षा है नारी

संकल्प की सोपान है नारी

दुख- दर्द में समर्पण है नारी

सुख का सागर है नारी

समाज का गौरव है नारी

गौरव पथ पर चलती नारी

नवल कीर्तिमान गढ़ती नारी

विजयश्री का परचम लहराती नारी

विध्वंस का प्रलयकारी रूप है नारी

जीवन की फूलवारी है नारी

करूणा की मूर्ति है नारी

रामायण का प्रारब्ध है नारी

महाभारत का अंत है नारी

पुरूष का मान है नारी

घर की शान है नारी

चौसठ कला की देवी है नारी

समाज की धुरी है नारी

प्रकृति की सुंदर रचना है नारी

सृष्टि की सृजना है नारी

                – डॉ. मनीषा त्रिपाठी

नारी जीवन – बलराम सोनी

चुप रहो शोर न करो.. 
ये भी क्या बात हुई घुटते रहो.. 
बात सही भी हो तो कह न सको.. 
सब कुछ बस सहते रहो.. 
जो चाहे हो बस देखते रहो.. 
गलती न हो पर घुटने टेकते रहो.. 
बस अब और न सहना होगा.. 
अपने हक़ के लिये लड़ना होगा.. 
चुप रहने का अब दौर नहीं.. 
खामोशी से सहने का दौर नहीं.. 
तलाशना होगा अपना आसमां.. 
और अपनी ही जमीं.. 
नारी अब चुप रहने वालों में नहीं.. 
बेबसी के घूंट पीने वाली नहीं.. 
आवाज शोर में दबने वाली नहीं.. 
सशक्त है नारी और सशक्त हो.. 
फैसला लेने में और सख्त हो.. 
किसी पर न आसक्त हो.. 
दबना नहीं है अब तो उभरना है.. 
अन्याय के विरुद्ध लड़ना है.. 
अपने हिसाब से जीवन जीना है.. 
            स्वरचित:- बलराम सोनी 

हम भी वीरांगनाएं – राजीव कुमार

वीर देश की वीरांगनाएं
देश की खातिर सही यातनाएं
कदम से कदम मिलाया
देश को आजाद कराया।
नारियां दिल पे पत्थर न रखती
तो तुम कभी चट्टान न बनते
हम नारियां समर्पण का भाव न जगाती
तो तुम कभी तुफान न बनते ,
जान तुमने गंवाई है
तो हमने भी खोया है
रण भुमि में भेजकर तुमको
दिल हमारा भी रोया है।
              – राजीव कुमार 

नारी तुझ सा देशभक्ति कौन जगाता ?

ममता का कर खण्डन

ललाट पे मल रक्त चंदन

अपना प्रिय-रघुनन्दन

गर्व से भेज देती हैं रण

कि सुरक्षित रहे भारत माता

नारी तुझ सा देशभक्ति कौन जगाता ?

पुत्र प्राण देश पे न्यौछावर

पति प्राण की भेट चढ़ा कर

देश प्रेम पे सर्वस्व लूटा कर

गर्व से तेरा सिर उठ जाता

नारी तुझ सा देशभक्ति कौन जगाता ?

                       – राजीव कुमार